कविता लोक

--


1. किताबें कुछ कहना चाहती हैं

[ अगस्त 2018 | मनोज कुमार सैनी द्वारा लिखित ]
किताबों में चिड़िया चहचहाती है, किताबों à¤®à¥‡à¤‚ खेतियां लहलहाती हैं । किताबों में झरने गुनगुनाते हैं,  परियों के किस्से सुनाते हैं। किताबों में .....
आगे पढ़ें ...

2. गीत

[ नवम्बर 2016 | के. पी. अनमोल द्वारा लिखित ]
देखो पापा! दूर पहाड़ी पर बैठी इक चिड़िया गाती देख-देख के हरियाली वो इठलाती है सृष्टि के मनोरम दृश्यों पे मुस्काती है .....
आगे पढ़ें ...

3. कवितालोक

[ नवम्बर 2016 | अनुराग बाजपेई द्वारा लिखित ]
कविता- जिन आँखों में सूरत संजोये थे तेरी अब उनमें ही नींदों के साए मिलेंगे तू चाहे न चाहे यूँ गाहे-बगाहे किसी रास्ते .....
आगे पढ़ें ...

4. स्त्री

[ जून-जुलाई 2015 संयुक्त अंक | लक्ष्मी जैन द्वारा लिखित ]
एक अनवरत संघर्ष जिसके साथ जूझ रही है हर सुबह हर शाम वो जलकर जी रही है उम्मीद की किरण लिए सफलता की आस लिए जीती जा रही है लेकिन अपनों से ही छली .....
आगे पढ़ें ...

5. प्रहरी

[ जून-जुलाई 2015 संयुक्त अंक | राघव शर्मा द्वारा लिखित ]
मेरे तन को वसन नही‚ अम्बर साया बन जाता है। धरती के पावन आँचल की‚ ममता निधि लुट जाता है। जब हो जाये रात अँधेरी‚ तारे चाँद दीप्त चमकते हैं। .....
आगे पढ़ें ...

6. तुम कौन हो

[ मई 2015 | बलजीत सिंह द्वारा लिखित ]
तुम कौन हो? किसी फिल्मी सितारे के नूरे नज़र तो नहीं हो और ना ही à¤¹à¥‹ तुम किसी सुप्रसिद्ध लेखक के पोते – पड़पोते शायद पत्रकार भी नहीं होगे à¤¤à¥à¤® .....
आगे पढ़ें ...

7. जिन्दगी

[ मई 2015 | मनीषा पराशर द्वारा लिखित ]
जिन्दगी,  ना तूने मुझे एक पल जीने दिया ना चैन से मरने दिया, तूने तो खूब खेल खेला à¤®à¥‡à¤°à¥‡ साथ पर मुझे एक बार भी , खेल कर हराने तक का भी मौका ना दिया। जब .....
आगे पढ़ें ...

8. समय की झंझा में

[ मई 2015 | दिलीप कुमार सिंह द्वारा लिखित ]
समय की झंझा में जीवन के पात बिखर गये मैं था ‚ तुम थी चाँद और बदली भी वही थी पर न कसक थी‚ न आग्रह था न कोई उन्माद था‚ न कोई अभिव्यक्ति थी तुम भी चुप थी‚ .....
आगे पढ़ें ...

9. ख्वाब

[ अप्रैल 2015 | बलजीत सिंह द्वारा लिखित ]
बहुत ख्वाब देखे तितलियों से ज्यादा रंगीन, अंधी रातों में झुरमुट-से .....
आगे पढ़ें ...

10. जेएनयू

[ अप्रैल 2015 | बलजीत सिंह द्वारा लिखित ]
वीराना चारों तरफ चीखता एकांत मेरे भीतर इमारतों को छूते विमान और इनका असहनीय शोर खो जाता भीतर चीखते सन्नाटे में यहाँ की सड़कें .....
आगे पढ़ें ...

11. गरीब

[ मार्च 2015 | अमिताभ विक्रम द्विवेदी द्वारा लिखित ]
लड़का और एक लड़की उम्र का कोई पता नहीं उनकी त्वचा से उम्र का पता नहीं चल रहा था कपड़े थे गंदे पर दाग अच्छे थे जैसे कि एक गरीब के होने चाहिए मांग रहे .....
आगे पढ़ें ...

12. संवाद

[ मार्च 2015 | अमिताभ विक्रम द्विवेदी द्वारा लिखित ]
जब हो जाता है बंद संवाद मनुष्यों से तो चल पड़ता है वह जंगलों में चाह नहीं उसे बुद्ध बनने की वह तो चाहता है अब जानवरों को दोस्त बनाना सीखना वहाँ के .....
आगे पढ़ें ...

13. गज़ल- कुछ तो है कहीं

[ फरवरी 2015 | प्रीति "अज्ञात" द्वारा लिखित ]
कुछ तो है कहीं, ये जो थोड़ा प्यार-सा है नशा है तेरा, चाहत या इक ख़ुमार-सा है मिला करता है मचलकर रोज ही तू मुझसे रहता बेवक़्त फिर भी तेरा इंतज़ार-सा है न .....
आगे पढ़ें ...

14. हम शिक्षक भावी भारत के

[ फरवरी 2015 | महावीर सिंह गुर्जर द्वारा लिखित ]
हम शिक्षक भावी भारत के नित नव प्रज्ञा उपजायेंगे ज्ञान कृषि की फसलों पर हम अमृत रस बरसायेंगे। भारत की पावन गरिमा को अक्षुण्ण हमेशा .....
आगे पढ़ें ...

15. बाधाओं को पार कर

[ जनवरी 2015 | डिम्पल गौर द्वारा लिखित ]
बाधाओं को पार कर  राही तुम बढ़ते जाना  कदम कदम पर होगी मुश्किल  फिर भी तुम ना घबराना | नयी सोच ,नए जज्बे से  नाविक, आगे चलते जाना  तूफानी लहरों से .....
आगे पढ़ें ...

16. क्यूँ करती हूँ. ऐसा अक़सर

[ जनवरी 2015 | प्रीति "अज्ञात" द्वारा लिखित ]
सोचती हूँ, अक़्सर ही बैठी-बैठी  कि क्यूँ करती हूँ मैं, तुमसे बातें,  बातें जो एकतरफ़ा हैं, बेसिरपैर  à¤•à¥€  बातें कुछ अनसुनी और अनुत्तरित ही...  जिनका .....
आगे पढ़ें ...

17. इस तरह नज़दीकियों का सिलसिला अच्छा नहीं

[ जनवरी 2015 | के. पी. अनमोल द्वारा लिखित ]
इस तरह नज़दीकियों का सिलसिला अच्छा नहीं रोज़ का मिलना-मिलाना बाख़ुदा अच्छा नहीं मसअले जो हैं हमारे बैठ के सुलझाएँ हम दो दिलों के बीच इतना फ़ासला अच्छा .....
आगे पढ़ें ...

18. शब्द-सेतु

[ दिसम्बर 2014 | प्रीति "अज्ञात" द्वारा लिखित ]
तुम्हारे और मेरे बीच एक सेतु हुआ करता था जिस पर चल रोजाना ही  विश्वास की गहरी नींव और स्नेह-जल की फुहारों में गोता खाते हुए हमारे शब्द  मचलकर .....
आगे पढ़ें ...

19. बस यही इत्मिनान है बाबा

[ दिसम्बर 2014 | के. पी. अनमोल द्वारा लिखित ]
बस यही इत्मिनान है बाबा के सफ़र में ढलान है बाबा हर क़दम पर सवाल उठ्ठेंगे ज़िन्दगी इम्तिहान है बाबा इक परिंदा कफ़स में' सोच रहा क़ैद क्यूँ आसमान है .....
आगे पढ़ें ...

20. बेटी

[ दिसम्बर 2014 | विशाल वर्मा लखनवी द्वारा लिखित ]
       बेटी मेरी भी जमी है , है मेरा आसमा , मुझे भी जीने का अधिकार चाहिए माँ-पापा आप दोनों का थोड़ा सा प्यार चाहिए । न तोड़िए मुझे मैं नाजुक सी .....
आगे पढ़ें ...
इस अंक में ...