भारत, भारत की आजादी का जश्न और हम

मैं अपनी बात एक फिल्म से शुरू करना चाहूँगा वो फिल्म है VICEROY'S HOUSE किसी फेसबुक मित्र ने मुझे इस फिल्म को देखने को कहा । इस फिल्म में 1947 के बंटवारे को Gurinder Chadha ने बेहद बारीकी से और शायद बेहद गहरे से विषय को जानने के बाद परदे पर दिखाया है ।

युवा वर्ग जिसमें फेसबुक के अधिकतम मित्र आते हैं उस त्रासदी को ... सच में शायद ही कभी समझ पायें, यकीनन इस फिल्म को देखने के बाद भी । क्योंकि असली दर्द दिखावे के दर्द से कई हजार गुना भयावह होता है ... फिर भी यदि आपने मन से इस फिल्म को देखा तो आपकी आँखें नम जरुर हो जाएँगी। इस विभाजन के लिए हम किसी को भी जिम्मेदार क्यों न ठहराते फिरें... पर इस फिल्म को देखने के बाद इतना जरूर समझ पायेंगे कि यह बहुत जटिल था .... और इस फैसले को कोई एक व्यक्ति न अंजाम दे सकता था न ही रोक पाने में समर्थ था ...बल्कि यूं कहें कि यह सामूहिक भूलों, सामूहिक जिदों, अहंकार और समस्याओं को छोटा कर आंकने की आदत का सामूहिक दुष्परिणाम था ....शायद इस फिल्म को देखते समय आप भी कुछ पलों के लिए इसे जियें और यही महसूस करें।

अब वो बात जो मैं शेयर करना चाहता हूँ ...बीते दिनों भारत बंद के दौरान देश भर में उथल पुथल रही, उससे पहले पद्मावत...उससे पहले जाट आन्दोलन ...कश्मीर में पत्थरबाज....गौ रक्षा के नाम पर घटनाएँ....(और भी जोड़े जा सकते हैं).... इन सब के बाद में कई बार रात रात भर नहीं सो पाया हूँ ...! भारत बंद के दिन  देश में जो हो रहा था उसके विडियो देखे मैंने .... और मुझे नहीं पता आप लोगों को कैसा महसूस हुआ होगा...पर मैं टूट सा गया .... कश्मीर सेना या पुलिस और लोगों के बीच पथराव की आदत सी हो गई शायद ... पर कुछ ऐसा ही पूरे देश में पुलिस और भीड़ के बीच हो रहा था .... वो खौफनाक था .... शायद उससे इसलिए इतना दर्द हुआ कि वो तो वहीं हो रहा है जहाँ हम रहते हैं जहाँ हमारे मित्र हैं, परिवार हैं...जहाँ रोज सा आना जाना है .....दर्द और चिंता लाजिमी है ।

मैं उन मुद्दों पर नहीं जा रहा ...कि इसके पीछे कारण क्या है...या सही हुआ या गलत हुआ .....मेरी चिंता किसी और बात को लेकर है.....और वो है...

आप उक्त सभी घटनाओं में एक समानता पाएंगे .... सब में शामिल हैं युवा ... ऐसे युवा जिन्हें ऐसी घटनाओं के वक़्त कॉलेज में होना चाहिए या कहीं अपने किसी रोजगार में बिजी होना चाहिए या किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुटा होना चाहिए या फिर अपने स्टार्ट अप की प्लानिंग करते हुए होना चाहिए......पर नहीं ...वो उस समय सरकारी सम्पति (बल्कि यूं कहे हमारी अपनी सम्पत्ति) को आग लगा रहा होता है.....कानून को हाथ में लेकर मरने मारने पर उतारू हैं ... वो नशे में है.....वो दुकानों में लूटपाट कर रहा है....वो चलती बस में बच्चों को नहीं बख्श रहा.....वो बहन बेटियों की आबरू की धज्जियाँ उड़ा रहा है... :(

आपको पता है ... हम सबसे ज्यादा किस बात का दंभ भरते हैं .....
विज्ञान में तरक्की ...नहीं (हमसे आगे बहुत हैं)
GDP...जी नहीं ..... जनसंख्या ... (अरे नहीं ...ज्यादा जनसंख्या à¤®à¤¤à¤²à¤¬ ज्यादा संसाधनों की जरुरत)....

हम दंभ भरते युवाओं पर....भारत में सबसे ज्यादा युवा हैं.... और युवा कमाएगा तो देश मालामाल होगा ......अधिक वृद्ध होना अच्छी बता नहीं क्योंकि उनके लिए तो सुविधाएँ देनी होती हैं अर्थात संसाधन चाहिए होते हैं....जैसे कि जापान में वृद्ध ज्यादा हैं ।

पर जो आज का युवा कर रहा है ...उसमे कुछ भी गर्व महसूस करने लायक नहीं ..... वो जा कहा रहा है....या यूं कहूं उसे ले जाया कहाँ जा रहा है....वो आग है पर सिर्फ घर जलाने के काम आ रही है ... उसे किसी बात का कोई ज्ञान नहीं ... वो सोशल मीडिया पर बैठा एक पोस्टमैन मात्र है जो किसी ऐसे अज्ञात के लिए काम करता है ... जिसे वो जानता नहीं .... वो आग फैलाता है दिन भर .... कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं करता कि ये सच भी है या नहीं .... वो ये नहीं जानता कि इसका दुष्परिणाम क्या हो सकता है ... इन दंगों में देख कर ऐसा लगता है कि उसे आराम मिलता है दूसरे को दर्द पहुंचा कर ......

क्या वजह है इसकी ??
शायद भविष्य में हम यूं कहें कि भारत को बर्बाद करने में बहुत सी चीजों का हाथ था .....उस लिस्ट में ...टी वी पर सही शाम होने वाली बारूद जैसी ज्वलनशील बहस ....और सोशल मीडिया का नाम भी रहे।

हम अपने देश को, पब्लिक सम्पत्ति को, क्यों अपना नहीं समझते .... हम क्यों बंटते जा रहे हैं.... हमारे पास हमारी निजी जरूरतों को पूरा करने की कुव्वत नहीं और हम क्यूं सरकारी सम्पत्ति को मिनटों में तबाह करने की हिम्मत कर लेते हैं ..... :(

क्यूं हम छद्म समस्याएं पैदा कर उनसे लड़ रहे होते हैं जबकि हम तो आज भी दुनिया के गरीब देशों में से एक हैं जहाँ बड़ी तादाद में लोग भूख से मरते हैं...जहाँ बेरोजगारी चरम पर ....जहाँ आज भी कुपोषण और मातृ और शिशु मृत्यु की स्थिति दयनीय है....:(

जिस वक़्त हम .... जाति और धर्म के नाम पर लड़ रहे होते हैं...उस समय दुनिया हमारा मजाक उड़ा रही होती है और वहां के युवा सुपर कंप्यूटर, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, स्पेस शटल की प्लानिंग कर रहे होते हैं .... !

इस फिल्म को देखकर शायद महसूस करें यह आजादी बड़ी मुश्किल से मिली हमें ....वो सेनानी जिनका नाम हम किताबों में पढ़ते हैं.....उनसे सैकड़ों गुना वो भी हैं जिनका कहीं नाम नहीं उस सब के खून से सींचा हुआ पौधा है देश .... जो 1947 में लहूलुहान कर दिया गया ..... और आजकल की घटनाएँ...लगातार कर रहीं हैं.....

कोई हक नहीं जबकि हमें ऐसा करने का ..... कोई भी हक नहीं!


- मोहम्मद इमरान खान
इस अंक में ...