सामान्य ज्ञान

इतिहास:-

पिछली बार हमने बात की थी अंग्रेजों का बंगाल पर आधिपत्य की इस अंक में हम आप के लिए भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन के संबंध में राजा राम मोहन राय की भूमिका को बताने का प्रयास करेंगे ........

राजा राम मोहन राय और ब्रम्ह समाज :-

राजा राम मोहन का जन्म 1774 ई॰ में बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उस समय देश में लोगों पर ईसाई धर्म तथा पाश्चात्य संस्कृति का इतना गहरा रंग चढ़ गया था कि वे अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को भूलने लगे थे । ऐसे वातावरण में राजा राम मोहन राय ने लोगों में अपने धर्म एवं राष्ट्र के स्वतन्त्रता के प्रति चेतना उत्पन्न की । इसके साथ ही उन्होंने अनेक सामाजिक और धार्मिक सुधार किए । रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने राजा राम मोहन राय के संबंध में लिखा है कि “उन्होंने भारत में नए युग का सूत्रपात्र किया । वस्तुतः वे आधुनिक भारत के जनक थे ।’’

राजा राम मोहन राय एक ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते थे । उन्होंने जनता की समझाया कि उनका हिन्दू धर्म अच्छा है, लेकिन उसमें कुछ दोष अवश्य उत्पन्न हो गए हैं, जिन्हें सरलता से दूर किया जा सकता है । अतः किसी दूसरे धर्म पर उंगली उठाने से अच्छा है की हम अपने विश्वास अपने धर्म और अपने कर्म के दोषों को दूर करें.............। उन्होंने धर्म और सामाजिक संबंधी दोषों को दूर करने के लिए बहुत ही व्यावहारिक उपाय को अपनाया था ।

सामाजिक सुधार के कार्यकर्म:-

उन्होंने बहू-विवाह, बाल-विवाह, जाति-प्रथा, पर्दा-प्रथा एवं निरर्थक कर्म-कांडों आदि का विरोध किया । राजा राम मोहन राय ने विधवा-विवाह निषेध प्रथा का भी घोर विरोध किया और सब क्षेत्रों में स्त्रियों की समानता का समर्थन किया । राजा राम मोहन राय ने धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों के लिए 20 अगस्त, 1828 ई॰ को ब्रम्ह समाज की स्थापना की । इस संस्था के द्वार सभी वर्गों के लोगों के लिए समान रूप से खुली हुयी थी जो उनके उत्थान के लिए सतत प्रयत्नशील रही ।

ब्रम्ह समाज के सिद्धांत :-

  1. ईश्वर एक है ।
  2. जीवात्मा अमर है ।
  3. ईश्वर की पूजा आत्मा की शुद्धता के साथ करनी चाहिए ।
  4. सभी धर्मों के उपदेश सत्य हैं, उनसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए ।
  5. ईश्वर के प्रति पितृ-भावना, मनुष्य जाति के साथ भ्रातृ-भावना तथा प्राणी-मात्र के प्रति दया-भावना रखना ही परम धर्म है ।
  6. ईश्वर की आराधना का सभी वर्गों को समान अधिकार एवं स्वतन्त्रता है ।
  7. ईश्वर सबकी प्रार्थना सुनता है और पाप-पुण्य के अनुसार दंड एवं पुरस्कार देता है ।

 

भूगोल(geography):-

इस अंक में हम आप सभी के लिए जल मण्डल से संबन्धित अति महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारी लेकर आए है तो आईए जल मण्डल के विषय में जानकारी लेते हैं-

जल मण्डल :-

पृथ्वी की सतह के 70.8 प्रतिशत भाग पर जल उपस्थित है । कुल जल का 97 प्रतिशत समुद्रों में , 2.16 प्रतिशत हिम के रूप में , 0.63 प्रतिशत भू-गर्भीय जल के रूप में एवं 0.03 प्रतिशत अन्य रूपों में होता है । मात्र 0.0001 प्रतिशत जल जलवाष्प(ठोस व द्रव) के रूप में रहता है ।

महासागर-

  • महासागर खारे पानी से युक्त वे स्थान हैं, जो पृथ्वी के 70 प्रतिशत भाग पर फैले हुये हैं । महासागरों की औसत गहराई 12500 फुट(3800 मीटर) है ।
  • सम्पूर्ण पृथ्वी पर पाँच महासागर हैं , जिनके नाम इस प्रकार हैं- प्रशांत महासागर(pacific ocean), अंध महासागर(atlantic ocean), हिन्द महासागर(indian ocean), आर्कटिक महासागर(arctic ocean) एवं अंटार्कटिक महासागर(Antarctic ocean)
  • विश्व के महासागरों में जल का कुल आयतन लगभग 1.4 बिलियन क्यूबिक किलोमीटर है , जो कि पृथ्वी के जल का 97 प्रतिशत है । शेष आयतन का 2 प्रतिशत अटलांटिक व ग्रीनलैंड में बर्फ की चादर के रूप में हैं। जबकि 1 प्रतिशत पृथ्वी पर ताजा पानी पीने के लिए उपलब्ध है ।

प्रशांत महासागर:-

  • प्रशांत महासागर विश्व का सबसे बड़ा तथा सबसे गहरा महासागर है । इसका क्षेत्रफल 10,57,23,740 वर्ग किलोमीटर है, जो पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का 1/3 है । उत्तर से दक्षिण की ओर बेरिंग जलमरूमध्य से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिक महाद्वीप की अडारे अंतरीय तक इसकी चौड़ाई 15,000 किलोमीटर है । इस विशाल महासागर में 17.4 करोड़ घन मीटर से भी अधिक जल राशि है ।
  • प्रशांत महासागर के प्रमुख बेसिन हैं- एल्यूमिनियम बेसिन, फिलीपाईन बेसिन, फ़िजी बेसिन, आस्ट्रेलियाई बेसिन, जेफ़रीन बेसिन आदि ।
  • विश्व की कुल 57 गर्तों में से 32 गर्त प्रशांत महासागर में हैं ।
  • प्रशांत महासागर में लगभग 20,000 द्वीप पाये जाते हैं , जो सबसे अधिक हैं ।
  • महासागरों की ऊपरी सतह सबसे अधिक सक्रिय रहती है । अधिक गहराई पर जल अत्यंत धीमी गति से गति करता है । महासागरों के जल का तापमान 5 डिग्री से -33 डिग्री c के बीच पाया जाता है ।
  • महासागरों के ऊपर का वायुमंडल महासागरों की ऊपरी सतह को ऊर्जा प्रदान करता है , जिसके कारण तरंगों व धाराओं का निर्माण होता है ।

अंध महासागर:-

  • अंध महासागर का कुल क्षेत्रफल 8,24,63,800 वर्ग किलोमीटर है । इस प्रकार इसका क्षेत्रफल प्रशांत महासागर के क्षेत्रफल से आधा है और यह विश्व के 1/6 भाग पर फैला हुआ है । यह उत्तर में ग्रीनलैंड से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिक महासागर तक फैला हुआ है ।
  • इसकी आकृति अँग्रेजी के अक्षर ‘s’ जैसी है । इसके पूर्व में यूरोप एवं अफ्रीका तथा पश्चिम में उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका है । डेनमार्क जलमरूमध्य द्वारा इसका संबंध आर्कटिक सागर से होता है ।
  • अंध या अटलांटिक महासागर में अन्य किसी महासागर की अपेक्षा अधिक महाद्वीपीय मग्नतट उपस्थित है । यह अंध महासागर के 13.3 प्रतिशत भाग पर फैला है । न्यूफाउंडलैंड तथा ब्रिटिश द्वीप समूह के निकट विश्व का सबसे महत्वपूर्ण मग्नतट ग्रांड बैंक तथा डॉगर बैंक के रूप में हैं ।
  • इसके प्रमुख बेसिन हैं – लेब्राडोर बेसिन, केपवर्ड बेसिन, ब्राज़ील बेसिन, अगुल्हास बेसिन आदि ।
  • अंध महासागर में 19 गर्त हैं, जिनकी गहराई 3000 फैदम(5500 मीटर) से अधिक है । इसकी सबसे गहरी गर्त प्यूरिटों रिको गर्त है, जो 5050 फैदम गहरी है ।
  • अंध महासागर के प्रमुख द्वीप हैं- ब्रिटिश द्वीप एवं न्यूफाउंडलैंड ।

हिन्द महासागर(Indian ocean):-

  • हिन्द महासागर , प्रशांत महासागर , तथा अंध महासागर की अपेक्षा बहुत ही छोटा है । यह भारत के दक्षिण में स्थित है । इसका कुल क्षेत्रफल 7,34,25,500 वर्ग किलोमीटर है । यह महासागर उत्तर में दक्षिण एशिया , पूर्व में हिंदेशिया व आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में अफ्रीका महाद्वीप से घिरा हुआ है । कर्क रेखा इस महासागर की उत्तरी सीमा है ।
  • हिन्द महासागर के केवल 4.2 प्रतिशत भाग पर ही महाद्वीपीय मग्नतट हैं , जबकि ये प्रशांत महासागर के 5.7% तथा अंध महासागर के 13.3% भाग पर फैला हुआ है । इसमें बहुत विविधता पायी जाती है ।
  • इस महासागर के लक्षद्वीप – चागोस कटक में मालदीव तथा लक्षद्वीप स्थित है ।
  • बंगाल की खड़ी में अंडमान-निकोबार कटक है । सुंडा गर्त इसकी सबसे महात्वपूर्ण गर्त है ।

भारतीय राजव्यवस्था :-

इस अंक में हम अपने प्रिय पाठकों के लिए भारतीय संविधान की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं की विवेचना करेंगे जो हमारे प्रिय पाठकों का  ज्ञान संवर्धन करेगा ऐसा हमारा विश्वास है ..........

भारतीय संविधान की विशेषताएँ :-

भारतीय संविधान की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  • लिखित एवं विस्तृत संविधान:- भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान है । जब संविधान अंतिम रूप से स्वीकृत किया गया तो उस समय इसमें 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियाँ थी । अब इसमें (76 वें संशोधन के बाद) 445 अनुच्छेद, जो 22 भाग एवं 12 अनुसूचियों में बँटें हैं ।
  • लोकप्रिय प्रभुसत्ता:- प्रभुत्ता सम्पन्न का अर्थ यह है कि संप्रभु राष्ट्र वाह्य अथवा किसी आंतरिक दबाव के कारण किसी अंतराष्ट्रीय संधि या समझौते को स्वीकार करने या न करने के लिए बाध्य नहीं होगी । भारतीय संविधान, लोकप्रिय प्रभुत्ता पर आधारित संविधान है । भारतीय संविधान भारत कि जनता द्वारा निर्मित है तथा इसमें अंतिम शक्ति जनता को दी गयी है । अर्थात प्रभुसत्ता जनता में निहित है किसी एक व्यक्ति में नहीं ।
  • धर्म निरपेक्ष राज्य:- भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष राज्य का प्रस्ताव करता है । इसके अनुसार, किसी भी धर्म को कोई संरक्षण अथवा प्राथमिकता न देना है । 1976 में 42वें संविधान संशोधन में संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़कर इसे और भी प्रभावी बना दिया गया ।
  • कठोर एवं ललीचेपन का समन्वय:- भारतीय संविधान में कठोरता और ललीचेपन का अद्भुत समन्वय है ।
  • संसदीय प्रभुत्ता तथा न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय:- भारतीय संविधान में ब्रिटेन की संसदीय प्रभुत्ता और अमेरिका की न्यायिक सर्वोच्चता के बीच के मार्ग को अपनाया गया है । भारतीय न्यायालय और भारतीय संसद दोनों अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोच्च हैं ।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका:- भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है । उसे न्यायिक पुनरीक्षण की शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं ।
  • संसदीय शासन प्रणाली:- भारत में संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है । हालांकि भारत एक गणराज्य है और उसका अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है किन्तु अमेरिकी राष्ट्रपति के विपरीत भारतीय राष्ट्रपति कार्यपालिका का केवल एकमात्र या संवैधानिक अध्यक्ष होता है ।
  • नीति निर्देशक तत्व:- राज्य नीति निर्देशक तत्व भारतीय संविधान की एक अनोखी विशेषता है । ये तत्व आधुनिक प्रजातंत्र के लिए व्यापक राजनीति, सामाजिक तथा आर्थिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं ।
  • समाजवादी राज्य :- भारतीय संविधान में प्रशासन के सामाजिक सिद्धान्त को प्रत्यक्षरूप से मान्यता दी गयी है। 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ शब्द जोड़ दिया गया है, जो मूल संविधान में नहीं था ।
  • संघीय शासन व्यवस्था:- संविधान के अनुसार, भारत राज्यों का का एक संघ होगा। इस व्यवस्था के अंतर्गत शासन की शक्तियों को केंद्र और राज्य सरकारों में विभाजित किया गया है और दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र हैं।
  • एकल नागरिकता:- भारतीय संविधान के निर्माताओं ने भारत में एकल नागरिकत के सिद्धान्त को अपनाया है ।
  • वयस्क मताधिकार:-  à¤­à¤¾à¤°à¤¤ का प्रत्येक नागरिक, जो मताधिकार के लिए निर्धारित 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुका है, सभी प्रकार के चुनाओं में मत देने का अधिकारी होता है ।
  • मूल अधिकार एवं मौलिक कर्तव्य:- भारतीय संविधान में मूल अधिकार और मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान किया गया है ।
  • आपातकालीन प्रावधान:-  à¤†à¤ªà¤¾à¤¤à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ की स्थिति में भारतीय संविधान में भारत के राष्ट्रपति को तीन प्रकार की आपातकालीन शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं ।

 

भारतीय अर्थव्यवस्था:­-

पत्रिका के इस अंक में हम अपने पाठकों के लिए अंतराष्ट्रीय आर्थिक संगठन की व्याख्या करेंगे जो वर्तमान में इसके महत्व से आप सभी को अवगत कराएगा .....................

  • 1 जनवरी, 1948 को गैट(GATT) की स्थापना हुयी । इसके 8वें चक्र के बाद डंकल प्रस्तावों के आधार पर विश्व व्यापार संगठन(WORLD TRADE ORGANISATION) की स्थापना की गयी । इसका मुख्यालय जनेवा में है ।
  • विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की घोषणा मराकश(मोरक्को ) में 1 जनवरी, 1995 को की गयी । भारत ने विश्व व्यापार संगठन की स्थापना से संबन्धित समझौते पर 30 दिसंबर, 1994 को अपनी सहमति दे दी थी ।
  • विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य हैं- विश्व व्यापार प्रणाली की सुचारु रूप से काम करने के लिए नियमों की स्थापना करना तथा इन नियमों के अनुपालन और व्यापार संबंधी विवादों के निपटारों के लिए एक बहुपक्षीय व्यापार्ट प्रणाली का विकास ।
  • इसके लिए एक विवाद निपटान संस्था(dispute settlement body) की स्थापना की गयी है ।
  • विश्व व्यापार संगठन की सर्वोच्च संस्था मंत्रीस्तरीय सम्मेलन है, जिसमें सभी सदस्य देशों के मंत्री सदस्य हैं । इस संस्था की प्रत्येक 2 वर्ष में कम से कम एक बैठक अवश्य होती है ।

इस अंक में ...